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दो से चार -05-Jan-2022

भाग 7 



लव कुमार और आशा उर्फ दिव्या में थोड़ी थोड़ी चैट होने लगी थी । आशा चाहने लगी थी कि उनकी नियमित चैट हो मगर वह ऐसा खुलकर कह नहीं सकती थी ।

आशा ने एक दिन अपना मैसेज बॉक्स खोला तो लव कुमार का वहां मैसेज था कि हम दो से चार के बीच में चैट करेंगे । मैं इस बीच थोड़ा फ्री रहता हूँ ।  आशा को लगा कि उसकी मुंह मांगी मुराद मिल गई है । वह  लंच के तुरंत बाद दो बजने का इंतजार करने लगी । पता नहीं आज ये घड़ी की सुइयां इतनी धीरे धीरे क्यों सरक रहीं हैं? 

उसने कई बार घड़ी देखी लेकिन अभी भी पोने दो ही बजे थे । पंद्रह मिनट निकालना भारी पड़ गया था उसे । पर वह सोच रही थी कि बात क्या करनी है ? उसे कुछ नहीं पता । जो वे पूछेंगे उसका जवाब दे देगी वह, और क्या ? यों उसने अपने मन को तसल्ली दे दी थी । 

इस खाली समय को काटने के लिए उसने लव कुमार की आज पोस्ट की हुई कहानी "बावरी" पढ़ना शुरू कर दिया । कहानी क्या थी एक हकीकत थी । नायिका सविता बहू बनकर जिस घर में आई , वहां सास का साम्राज्य था । उन दिनों सास की बात भगवान का आदेश जैसे होती थी । क्या खाना, क्या पीना, क्या पहनना , किसके जाना किसके नहीं जाना सब सास ही तय करती थी । उसे लगता था कि उसकी हैसियत एक कठपुतली की तरह है जो इस घर की चारदीवारी में कैद है और इसी चारदीवारी में ही वह मर जायेगी । वह जब कभी अपने पति से शिकायत करती तो पति कहता कि जैसा अम्मा कहे, वैसा ही कर लो , इसी में सुखी रहोगी । अब तो सविता के पास कुछ नहीं बचा था कहने सुनने के लिए । उसने अपनी सारी उमर ऐसे ही निकाल दी । बेचारी बावरी बहू ।

जब उस बहू का बेटा बड़ा हुआ तो सोचा कि अब तो बहू आ जाएगी तो उसे कुछ राहत मिल जाएगी । मगर यह क्या ? बहू तो उसकी सास से भी दो कदम आगे निकली । घर का कुछ काम नहीं करती थी वह बल्कि उसमें मीन मेख निकालती रहती थी । खाना अच्छा नहीं बना । घर में कितनी गंदगी है। मेरे पास ढंग के कपड़े तक नहीं हैं । वगैरह वगैरह। बेचारी सविता तो दोनों तरफ से पिस गई थी । पहले सास ने पीसा अब बहू पीस रही थी ।

एक दिन उसने अपने बेटे से कहा कि बहू को समझाए कि वह कम से कम नाश्ता वगैरह तो बनाए । इतना सुनते ही बेटे ने साफ कह दिया "मम्मी, सर्वेंट रख लेते हैं " । उसे अपने पति याद आ गये जो इस दुनिया में अब नहीं थे । उन्होंने तो स्पष्ट कह दिया था कि तुम जानो और मां जाने , मैं दोनों के बीच में नहीं पड़ने वाला । और उन्होंने पल्ला झाड़ लिया। मगर ये बेटा, जिसे नौ महीने पेट में रखा वह आज बीवी के सामने भीगी बिल्ली बन रहा है । एक बूढ़ी मां से इतना काम करवा रहा है और बीवी को कुछ नहीं कहता है । वह सचमुच की बावरी ही थी जो अपने बेटे बहू को पहचान नहीं पाई । उसकी सास ने भी शोषण किया और अब बेटा बहू भी कर रहे हैैं । 

उसने कड़ा फैसला कर लिया और बेटे बहू को घर से निकाल दिया । एक वसीयत बनवा ली जिसमें उसने अपने मकान को "वृद्धाश्रम" के लिए दान कर दिया । कहानी इस तरह समाप्त हुई ।

वाकई बहुत शानदार कहानी लिखी थी लव कुमार ने । आशा सोचती थी कि इतना दिमाग कहां से लाते हैं ये ? । उसने घड़ी की ओर देखा ठीक दो बजे रहे थे । इसी पल का तो इंतजार कर रही थी वह । दो बजे से उसका समय शुरू हो रहा था । उसने फटाफट  व्हाट्स ऐप खोला और लिखा 
"नमस्कार सर" 
"नमस्कार दिव्या जी । कैसी हो" ? 
"जी अच्छे हैं । आप कैसे हैं" ? 
"हम भी अच्छे ही हैं" 

दोनों में थोड़ी देर खामोशी रही । लव कुमार ने लिखा "क्यों न हम अंत्याक्षरी खेलें " ? 

दिव्या को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई थी । वह अपने आपको चैंपियन समझती थी इस गेम में । उसने फट से लिख दिया । 
"जी , ठीक है " 
दोनों में अंत्याक्षरी शुरू हो गई । डेढ़ घंटा कब बीत गया पता ही नहीं चला । फिर लव कुमार ने कहा "ऐसे तो यह गेम कभी समाप्त नहीं होगा । ऐसा करते हैं कि मैं एक शब्द देता हूं तुम ऐसा गाना सुनाना जिसके मुखड़े में वह शब्द आता हो । 
"जी ठीक है" 
वह शब्द है , बिंदिया । 
दिव्या ने गाना लिखा 
"बिंदिया चमकेगी, चूड़ी खनकेंगी" 
फिर उसने लव कुमार के लिए शब्द दिया ,  कागज 
लव कुमार ने गाना लिखा 
"कोरा कागज था यह मन मेरा" ।फिर लव कुमार ने शब्द लिखा , जुल्फ 
दिव्या ने गाना लिखा 
"ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आंखें" 

फिर दिव्या ने शब्द लिखा , प्यार 
लव कुमार ने गाना लिखा 
"दे दे प्यार दे प्यार दे , प्यार दे रे , हमें प्यार दे" 
 
अब लव कुमार ने कोई टिपिकल शब्द देने की सोची । कुछ देर सोचने के बाद उसने शब्द लिखा "घाघरा" 

दिव्या चक्कर में पड़ गई । ऐसा कोई गीत उसे आता ही नहीं था जिसमें घाघरा आता हो ! बहुत सोच विचार के बाद वह बोली 
"ऐसा कोई गीत नहीं है इसलिए मैं जीत गई " 

लव कुमार ने कहा "तुमको जज किसने बना दिया ? ऐसे तो कई गीत हैं । कहो तो सुना दूं । 
दिव्या अड़ी रही लेकिन लव कुमार नहीं माने । आखिर में उन्होंने सुनाया 

टी वी पै ब्रेकिंग न्यूज , हाय रे मेरा घाघरा" 

और लव कुमार जीत गए । दिव्या जो खुद को विश्व चैंपियन समझती थी, एक ही दौर में चित्त हो गई । 
इस प्रकार आज का "दो से चार" का समय ऐसे गुजर गया जैसे कि कोई हसीन ख्वाब हो । पता ही नहीं चला । अब तो कल दो से चार के बीच ही चैट हो पाएगी । दिव्या को अब 22 घंटे इंतजार करना था । बड़ा मुश्किल काम था यह । लेकिन वह कर भी क्या सकती थी । 

इंतजार के पल कितने धीमे निकलते हैं यह उसे अब पता चल रहा था । पर वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है उसके साथ । उसका दिल कहीं आसमान में ऊंचा और ऊंचा उड़ रहा है । आंखों में फिर से रंगीन सपने सजने लगे हैं । ऐसा क्या आकर्षण है जो वह किसी अनजानी शक्ति से खिंची चली जा रही थी । क्या उसे कुछ कुछ हो रहा था जैसा कि फिल्मों में होता है । मन इतना अधीर क्यों है । वह कितना समझाये मन को ? वह तो समझा समझा कर.हार चुकी है मगर दिल.है कि मानता नही । मन से भी वह कह चुकी है कि "मन रे , तू काहे ना धीर धरे" 

उसने अपने आपको समय की धारा में खुला छोड़ दिया । किस्मत में जो लिखा है वह.अवश्य होकर रहेगा । देखते है कि शिवजी क्या खेल खेलते हैं उसके साथ ।

जिंदगी में उसने दुख ही दुख उठाये हैं । अब जाकर थोड़ी खुशियां आईं हैं उसकी जिंदगी में । पर क्या ये चंद खुशियां स्थाई रह पायेंगी ? यक्ष प्रश्न था उसके लिये मगर इसका कोई जवाब नहीं था उसके पास ।  


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4 Comments

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:06 PM

Nice written

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Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:29 PM

बहुत सुंदर भाग

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Shalu

07-Jan-2022 02:06 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Jan-2022 02:53 PM

Thanks

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